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कोइए आपणने श्वान सम कह्या तो एमां कांइ खेद करवानुं - कारण नथी. हवे दुर्जनो ज्ञानीओने श्वान सम कह्याथी पोते जे श्वान सम छे ते मटवाना नथी, ते दुर्जनो श्वानमा रहेला दोषोने ग्रहण करनार होय छे. रस्ते जनार भला माणसने वाउ वाउ करीने भसकुं, पोते खाय अने विशेष होय तोपण बीजाने न खावा देवुं, निस्सार हाडकांने पण मोमां घालीने 'फरवुं वमन करीने पश्चात् भक्षण करं इत्यादि दोषो श्वानना - दुर्जनोमां पण वासो करे छे. दुर्जन वाडथी पण कजीओ लइ घमघम्यो रहे छे. दुर्जन लक्ष्मी छतां हाय खूटी जशेएम धारी, पुण्यदान करतो नथी, अने सद्गुरूने तो भसवानी पेठें निंदाना शब्दाथी पोतानुं दुर्जनत्व देखाडे छे. जेम श्वान - खराब वस्तु अगर सारी वस्तु उपर मूतरी जाय छे तेय दुजैन सारा अगर नठारा पुरुषनी निंदा करवा मंडी जाय छे. "जे विवेक रही होय छे, तेम दुर्जन पण गुरु, माता तेमनी आज्ञा मानवी ए आदि विवेक श्वान जेम बीजा श्वानने देखी भसवा ज्ञानी गुणीनी अदेखाइ करवा दुर्जन पण वाणीथी ज्ञानीओने
पितानुं मान साचव रहित होय छे, एक मंडी जाय छे. तेम दुर्जन पण मंडी जाय छे. कूतरानी पेठें डंश करे छे, अहो ए सर्व कर्मनी पुरुष संगतथी सुधरी सज्जन
गति छे. दुर्जन पण सत् बने छे, सद्गुरु समाग
रुपे
'मथी पापीओनां पाप नाश पामे छे, कपटीओ कपट रहीत
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