________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जे वडे बंधाय छे तेज वस्तुथी ज्ञानी छूटी जाय छे, अज्ञानी जे जे सांभळे छे तेनो सम्यग् अर्थ जाणी शकतो नी तेथी ते बधिर समजवो. मूर्ख मानमां अने अपमानमां तुल्यता धारण करे छे, कारण के ते मान अन अपमानना स्वरुपथी अज्ञातछे. ज्ञानी मान अने अपमाननुं स्वरुप जाणी आत्मतत्त्वसां स्थिर प्रज्ञावाळो थइ मनमा एमे विचारे छे के-मान अने अपमान आत्माने नथी तो हुं हर्ष विषाद शा कारणथी करूं, एम चितवी मान अने अपमान शब्द भाषक प्रति समवृत्ति धारण करे छे. मान अपमान शब्दथी पोते हर्ष विषादास्पद बनतो नथी. अज्ञानताथी मूर्ख पोताना दीवसोने मुखे निर्गमे छे. अने ज्ञानी ज्ञानावस्थाथी भौतिक शरीरने वहन करतो अने भौतिक शरीरमा रह्यो छतो पोताने तेथी न्यारो मानतो सच्चिदानंद स्वरुपे स्थित छतो स्वकाल निर्गमन करे छे, अज्ञानी मिथ्यात्व गुणठाणे वर्ते छे, अने ज्ञानी चतुर्थादि गुण स्थानके वर्ते छे. ज्यां सुधी, देव गुरु धर्म तत्त्वने जाण्यु नथी अने तेनी यथार्थ श्रद्धा थइ नथी त्यां मुधी अज्ञानावस्था जाणवी. व्याकरण, अलंकारादिक एम, ए. नी परीक्षा पसार करी पण जिनोक्ततत्त्व- ज्ञातृत्व तथा, तेनी यथार्थ श्रद्धा थइ नथी. त्यां सुधी ज्ञानी शी रीते कही शकाय? कोइ मने बधिर कहेतो तेथी मारे शं? कारण के, जे काने सांभळे छै तेने बधिर हेमार पोतेज असत्यता छ, हुं आत्मा बधिर मथी एवी मारी शक्ति छे. कां छे के
For Private And Personal Use Only