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णवो. ज्ञानी सुवर्ण अने पत्थर उपर, पौद्गलित्व बेमां सरखं छ एम जाणी, बेने एक सरखा गणे छे. ज्ञानीने परवस्तु उपर ममत्त्व बुद्धि रहेती नथी. पोताना आत्मामा रहेला ज्ञान दर्शन चारित्रादि गुणोने प्रगटाववा तेनी प्रवृत्ति बनी रहे छे. अलबत मूर्ख ते कार्यने अकार्य समजे छे अने अकार्यने कार्य तरीके गणे छे. वा कार्य अने अकार्य बन्नेने एक सरखां गणे छे. आ संसारमा मनुष्यावतार पामी आत्मानी मुक्ति थवी ते कार्य छे तेने पेहेला गुणठाणावाळो मिथ्यात्वी जीव अकार्य तरीके समजे छे ते मुक्ति साधक बनतो नथी अने मुक्ति हेतु भूत धर्मानुष्टान मूर्खने विष सरखं भासे छे, अने खावू पीवू बगीचामां फरवू घर बनाववां धनोपार्जन करवू तेने अमृत समान माने छे. अहितमां हित बुद्धि अने हितमा अहित बुद्धि मूर्खने थाय छे, देव दर्शन, सद्गुरु वंदन तथा दर्शनने मूर्ख झेर समान गणे छे अने गप्पां मारवां निंदा करवी नाटक जोवू, तेने अमृत समान अंज्ञान दृष्टिथी माने छे, अनेक इच्छा
ओ मूर्खने मनमा अनुक्रमे उत्पन्न थाय छे. अधर्मीने धर्मी तरिके मूर्ख माने छे, अने धर्मीने अधर्मी तरिके स्वीकारे छे. जिनेश्वर भगवाने कहेला नवतत्त्व तेनी श्रद्धाविना धर्मी पणुं यथा योग्य कही शकाय नही. ज्ञानी ते धर्मी तथा अधर्मीने ज्ञानदृष्टिथी सम्यग् रीत्या अवलोके छे. स्वमावस्थामां जेम सर्व शून्य भासे छे, तेम ज्ञानीने पोताना आत्मा शिवाय अन्यवस्तुमा आत्मतत्वना अभावथी शून्यपणुं भासे छे. अज्ञानी
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