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सुखाकारी होय तो धर्म रुडी रीते साधी शकाय छे माटे शरीर रोगी छतां तेनी दवा कराववामां कंइ हरकत नथी, अने दवा कराववा संबंधी ज्ञानीने कंइ चिंता थती नथी. भतोनुं एज कार्य छे के सद्गुरुना रोगोने टाळवा के जेथी स-
गुरुजी शुद्ध रीत्या स्वकीय आत्म स्वरुपमां तल्लीन रहे. वैया वच्च गुण अप्रतिपाति छे उत्तराध्ययनना सम्यक्त्वपराक्रम अध्ययनमां तेनुं ध्यान कर्यु छे. मूर्ख बहु भोजन करे छे, ज्ञानी स्वात्म भोजनथी तृप्ति पामे छे पण ज्ञानामृतरूप भोजनथी ज्ञानी तृप्ति मानतो नथी. भोजन उपर लोलुपता होय तेथी संतोष मानतो ना होउं अने रात दिवस खाउं तो हुं मूर्ख कहेवाउं तेमां नवाइ नथी. मूर्ख अतृप्तमना होय छे. ज्ञानी आत्मानुं स्वरुप ओळखी संसारथी पाताने न्यारो जाणी, पौद्गलिक वस्तुनी इच्छा राखतो नथी. अने तेनाथी पोतानी तृप्ति मानतो नथी, परवस्तु उपरथी इच्छा उतरी जवाथी कोई वस्तुनी चाहना रहेती नथी, स्वआत्म स्वरुप करी ज्ञानी सदा तृप्त रहे छे, अज्ञानीने भोजनथी पण तृष्टि यती नथी, जे जे वस्तुओ आंखे देखे छे तेनी इच्छा कर्या करे छे, अनेक प्रकारनां मिष्टान्न भक्षणथी अज्ञानीनी इच्छा निवृत्त यती नथी, ज्ञानीने सर्व अन्नना उपर समभाव रहे छे. गमे तेवा भोजनथी उदर पूर्ति करी ज्ञानी तृप्त रहे छे, मूर्ख सुवर्ण अने पत्थरने एक सरखा गणे छे ते पण एक जातनो मूर्ख छे, जे वस्तुनी पोतानी नथी तेमां ममता बुद्धि ते बीजो मूर्ख जा
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