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तर गुरु संन्यासी भरडा भक्त जोगी फकीर ब्राह्मण पादरी आदि लौकिक गुरु जाणवा. तेनो त्याग करवो जोइए. लोकोत्तर गुरुना बे भेद छे. १ लोकोत्तर कुगुरु अने २ लोकोत्तर सुगुरु-जिनेश्वर भगवाननी आज्ञा उत्यापीने पोतानी हठे चालनार अने जिनाज्ञा विरुद्ध उपदेश आपनार लोकोत्तर कुगुरु जाणवा, अने मिनाज्ञा मुजब चारित्र पाळता जे वर्ते छे, ते लोको त्तर सुगुरु जाणवा. वळी निक्षेपा थकी गुरुनु वर्णन करे छे, १ नामगुरु, २ स्थापना गुरु, ३ द्रव्यगुरु अने भावगुरु, कोइनुं गुरु एवं नाम पाडयुं ते नामगुरु, कोइपण वस्तूमां गुरुनो आरोप ते स्थापना गुरु, अने गुरुनो वेष पहेरी गुरु तत्वना उपयोगथी शुन्यपणुं आत्म उपयोगथी शुन्य छतां उपरना वेषे युक्त जे होय ते द्रव्यगुरु, जीवतत्त्व अने अजीवतत्त्वने सम्यग् रीत्या जाणी पुद्गल भाव त्यागी आत्म गुणमांरमणताकरनार आत्मा परमात्म पद पामे. तेना माटे यथा योग्य चारित्रने पाळनार मुनिराज-जिनाज्ञा विरुद्ध उपदेश नहीं देनार आत्मोद्धारक, कषाय वारक, मुनिराज भावगुरु जाणवा. एवा गुरुने पामी भव्य प्राणी यथातथ्य आत्म तत्त्व जाणे छे अने स्व आत्म स्वरुपनो अनुभव बोध पामेला छे एवा सदगुरुने देखी आत्मामां अत्यंत आनंद उत्पन्न थाय छे, स्वपर तारक तराणि समान एवा गुरुनो संबंध अत्यंत पुण्ययोगे थाय छे. श्री सद्गुरु पंचाचार पाळे छे, अने अन्य पासे पळाचे छ, पोते मुक्ति जाय छे अने अन्यने पण उपदेश द्वारा मुक्तिपद
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