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पणे वहन करनार, गामोगाम अप्रमत्तपणे विहार करनार, परवस्तुमांथी ममत्व भाव त्यागी, आत्मस्वभावे रमण करनार छे.
गाथा. एगोहं नथ्थि मे कोइ नाहमन्नस्स कस्सइ ॥ एवं अदीणमणसो अप्पाणमणुसासइ ॥ १ ॥ एगो मे सासओ अप्पा । नाणदंसणसंजुओ ॥
सेसा मे बाहिराभावा।सव्वे संजोगलख्खणा ॥२॥ .... भावार्थ-हुं एकलोछं, माझं आ संसारमा कोइ नथी.
आ प्रमाणे सत्य मनथी पोताना आत्माने ते भावे छे. एक मारो शास्वत आत्मा छे, आत्मा वाळ्यो बळे नहीं, छेद्यो छेदाय नहीं, भेद्यो भेदाय नहीं, ज्ञानदर्शन चारित्रवडे करी संयुक्त छ, बाकी बहिर्भाव संयोग लक्षणवाळो छे. इत्यादि 'भावना भावनार अने चारित्र पाळनार अने भव्यजीवोपदेशक मुनिराज नाव समान जाणवा. जेम नाव पोते तरे छे, अने पोतानामां बेठेला हजारो जीवोने तारे छे, तेम श्री सद्गुरु पण पोते संसार समुद्रने तरे छे, अने बीजाओने तारे छे एवा गुरुनो आश्रय करवाथी जन्ममरणनां दुःख नाश पामे छे. अने शाश्वतपद पामी शकाय छे, ए प्रमाणे गुरुओ पोते तरनार अने बीजाने तारवामां शक्त एवा गुरुओ जाणी सुगुरुनो आश्रय करवो. वळी गुरुना बे भेद छे १ लौकिक गुरु अने २ लोको
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