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छतां हुं गुरुद्धं एम बीजा प्रति कथन करनार मर्कट समान गुरु जाणवा. एवा गुरुओनो त्याग करवो.
पोताना व्रतमां दूषण नहिं लगाडनार, संसारने असार जाणनार नवतत्त्वने जाणनार समतानदीमां झीलनार जिनाज्ञा पालक गुरुओ हस्ति समान जाणवा. सकळशास्त्र पारंगामी, सातनय सप्तभंगी षद्रव्य निक्षेपादिथी यथार्थ तच्च ज्ञाता पंच महाव्रतरूप पंचमेरुना भारने वहन करनार स्त्री परिग्रह त्यागी एवा गुरुओ सिंह समान जाणवा. एवा गुरुओ मिथ्यावीरूप हरणाने बीवरावी दे छे. सत्तर भेदें संजमना आराधक, निद्रा प्रमादना त्यागी शत्रु मित्र उपर समभावे जेणे चित्त स्थापन कर्तुं छे. द्रव्य क्षेत्र कालानुभावे चारित्र पालन तत्पर षड् द्रव्यना गुण पर्यायने जाणनार, वैरागें करी आत्मानो उद्धार करनार, गामोगाम विहार करनार गुरुजी भारंड पंखीनी उपमा पामे छे. जिनेश्वर भगवाननी वाणीथी जेणे सम्यग् रीत्या तत्त्व जाणी तेनी श्रद्धा हृदयमां करी छे, सिंह समान शूरा थइ संसारने, पूंठ दइने जेणे दीक्षा ग्रहण करी छे, जीवादिक नव पदार्थतुं स्वरुप सातनये करी यथार्थ रीत्या जाण्युं छे, पंचमहाव्रतने चढते भावे करी पाळे छे अने अथिर संसारमां जरा मात्र पण कोइ पदार्थथी मोह पामता नथी, अढारहजार शिलांगरथना घोरी स्वात्महित साधनार, स्वस्वभावे रमनार, परभाव त्यागी - हंस पक्षीनी पेठे स्व अने परनो भेद करनार मुनिवर्य मुगटनी पेठें जिनाज्ञाने दिन प्रतिदिन अखंड -
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