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जाणनार छे. स्याद्वाद धर्मने हृदयमा धारण करी भन्यजीवाने पण स्याद्वाद धर्मनो उपदेश आफ्नारा छे. क्रोध मान, माया, अने लोभ ए चार ४ कषायने जीतनारा छे. पंच मेरुना भारनी पेठे पंच महावतना भारने वहन करनारा छे. पैच सुमति युक्त श्रीसद्गुरु छे अने पंचमी मोक्षगती तेना आरीधक छे. पंच समवायी कारणोना जाणनार छे. पंचाचार पोते पाळता छता अन्य भव्य जीवोने तेनो उपदेश आपे छ, पंच क्रियाने जाणी तहेतु अने अमृत क्रियाने सेवन करनारा छे. शब्द रुप रस गंध अने स्पर्श ए पंच विषयोना त्यागी सद्गुरु जाणवा. छ प्रकारे बाह्य अने छ प्रकारे अभ्यंतर तपना ज्ञाता तथा तेना करनार श्री सद्गुरु छे. छकायना जीवोनुं रक्षण करनार छे. षड् रिपुने जीतनारा छ प्रकारनी हानी वृद्धिने जाणनारा गुरु महाराज छे, सात भयने जीतनार अने अष्टमदना टालनहार श्रीसद्गुरु छे. अष्ट प्रवचनमाताने सम्यग् रीत्या आराधन करनारा छे, अष्टमी गतिना अभिलाषी श्रीसद्गुरु छे. नव प्रकारनां पाप नियाणांने त्यागी समभावे झीलनार श्री सद्गुरु छे. नव प्रकारनी ब्रह्मचर्यनी गुप्तिने धारण करनारा श्री सद्गुरु छे. दशविध संग्राना आराधक, अगीयार अंगना जाणनार, बार उपांगना ज्ञाता तेर काठीयाना जीपक, चौद विद्यानो खप करनार, चौद गुणठाणां त्यागी पंचमी गतिना अभिलाषी, श्री सद्गुरु छे. पनर भेदें सिद्धना जाण, सोळ कषायना जीपक, सचर भेदें
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