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जीवोनी सद्गति थवी दुर्लभ छे. श्री सद्गुरुथी उपरांग जीवो वारंवार संसार समुद्रमा अरहा परहा दुःखी थता अथडाय छे. श्री सद्गुरु स्मरण, भक्ति, बहुमान तेज साचो
___ मोक्षनो उपाय छे! मोक्ष तरवाने जे समर्थ होय एवा सद्गुरुनो आधार अत्यंत पुण्यथी प्राप्त थाय छे.
दुहा. मान सरोवर हंस ज्युं । भूख्याने जिम अन्न ॥ सद्गुरु वाणी सुणतां । हरखे भवि जीव मन ॥७॥
. मान सरोवरने देखी हंस जेम हरखे छे. अने भूख्यो माणस अन्नने देखी जेम खावानी रुचीथी हर्षे छे, तेम पंच महाव्रतधारी जिनेश्वरनी आज्ञा प्रमाणे उपदेश आपनार श्री समुरुनी वाणी सांभळतां भव्यो मनमा हर्ष पामे छे. ज्ञान दर्शन, चारित्ररुप रत्नत्रयीना आराधक श्री सद्गुरु छे. कमळ पत्रनी पेठे संसारना प्रेमथी लेपाता नथी. मेरुनी पेरे धीर छे. समुद्रनी पेठे गंभीर गुणे करी शोभनारा छे, आकृतिथी चंद्रमानी सौम्यताने पण जीतनारा छे. कुदेव कुगुरु कुधर्मरुप मिथ्यात्वना टालणहार छे. व्यवहार अने निश्चय नयना
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