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संयम आराधक, अठार हजार शीलांगरथना धोरी, ओगणीस काउसग्गदोषना दोषना टालणहार, वीस असमाधिस्थान निवारक इत्यादि गुणें करी वीराजमानश्री सद्गुरु महाराजा संसाररुप समुद्रने चारित्ररूप वहाण करी सपाटा बंध तरी जाय छे. अहो एवा गुरुनो आश्रय जे जीवो करे छे, ते पण संसार समुद्रने तरे छे. सात नय अने सप्त भंगीना ज्ञाता श्री सद्गुरु छे. गुरु कुळं वासमां वसी सदज्ञानें करी सर्व उपमाओने लायक छे. बहुश्रुतनी उपमाओ श्री उत्तराध्ययन सूत्रना एकादेश अध्ययनमां वर्णवी छे. ते उपमाओ जेने छाजे छे, एवा गुरु महाराजाने देखी कोने हर्ष थया बिना रहे ? कोइने पण हर्ष था विना रहे नही. पंच महाव्रतनी पंचवीस भावनाओ करी जेणे पोताना आत्माने भाव्यो छे, अने व्यवहार तथा निश्रय चारित्रनुं स्वरुप जाणनारा गुरु महाराज छे, पापारंभ कामोनो जेणे त्याग कर्यो छे, सिंहनी पेठे शूरा, भारंड पंखीनी पेठे अगमत्त, अने बेताळीस दोष रहित आहार ग्रहण करी गामोगाम विहार करनारा श्रीसद्गुरुने देखी जेना मनमां हर्ष ना थाय ते अयोग्य जीवो जाणवा. आर्तध्यान अने रौद्रध्यानना टालणहारश्री सद्गुरु छे. धर्मध्यान अने शुक्ल ध्यानमां स्वकाल निर्गमन करी आठ कर्मोनो नाश करनार श्री सद्गुरु छे. वर्त्तमानकाळे द्रव्य क्षेत्र काळ भावें करो यथाशक्ति चारित्र पाळवामां जे महंत छे. कोमळ कंटक वैराग्यनो त्याग करी शुष्क कंटक वैराग्यने धारण करनार श्री सद्गुरु छे. एका
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