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अने एकलुं ज्ञान कई खपमां आवी शकतुं नथी.
आ ठेकाणे विशेष विवेचन करवामां आवे छे. कोइ पंगु अने अंघ वगडामा हता. ते वखते एकदम दावानळ सलग्यो आंधळो कइ तरफ जनुं ते जाणतो नथी अने पांगुल जाणे छे छतां चालवानी शक्ति नथी. हवे जो परस्पर एक मेकनी सहाय विना वर्ततो बन्ने मरो जाय, पण पांगळो आंधळाने कहे - भाइ हुं कइ तरफ ज ए जाएंछु, पण चाली शकवानी शक्ति नथी तेथी आप जो चालो अने हुं तमारा उपर बेनुं तो तमे अने अमे बची शकीए, आंधळो ते वात कबूल करी पगे. चाले तो बची शके. तेम ज्ञान अने क्रिया एबेनो जो मेळा थाय तो मुक्ति नगरी पहोंची शकाय आंधळा समान क्रिया जाणवी, अने पांगळा समान ज्ञान जाणवुं, एम पूर्वाचार्यो दृष्टांत घटावे छे. 'ज्ञान ज्ञानावरणी कर्मनो नाश थवाथी प्रकट थाय छे.
प्रश्न- क्रिया आत्माना घरनी छे के, पुद्गलना घरनी छे ?
उत्तर - क्रिया निश्चय करी जोतां पुद्गल द्रव्यना घरनी छे अने ज्ञान ते आत्मानो गुण छे. ज्यारे सिद्ध स्थानमां जीव पहोंची परमात्मारूपे थाय छे त्यारे ते वखते जीव अ क्रियपणुं पामे छे. सक्रियपणुं ज्यां सुधी कर्म होय छे त्यां मुधी छे, ज्यारे संपूर्ण कर्मनो नाश थाय छे त्यारे अक्रियपणं पामी शकाय छे. क्रिया मुक्ति मेळववामां साहायकारी छे.
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