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खावू पीवू इत्यादि दुनियामां अनेक क्रियाओ देखवामा आवे छे तेनामां मुक्ति आपवानी शक्ति नथी पण जे क्रिया थकी आत्मानी मुक्ति थइ शके ते क्रियानुं अवलंबन कर जोइए. अने ते क्रियाने शुद्ध क्रिया कहेवी जोइए. जेम आंखो दुःखवा आवी होय छे त्यारे आंखमा लागेला जे उष्ण पुद्गलो तेना नाश भणी शीत पुद्गलनो संयोग, सुरमो, इत्यादि कारण छे, तेम आत्माने लागेलां कर्मरुप पुद्गलो तेना नाश सारु क्रिया कारणीभूत छे. पण याद राखg जोइये केज्ञानपूर्वक क्रिया इष्ट फळ आपी शके छे. जेम कोइ माणसे कोइना घेर जइने लाडु दूधपाक विगेरेनु भोजन कयु, पश्चात् तेनी मरजी थइ के-आपणे-लाडु तथा दूधपाक बनाववो एम निश्चय करी, दूध मेळववा लाग्यो, घी मेळव्यु, पण लाडु तथा दूधपाक शी रीते बने ते जाणतो नथी, तेथी बीचारो एकली क्रियाए करी शी रीते लाडु बनावी शके ? तेम हेय ज्ञेय अने उपादेयना ज्ञान विना मुक्ति नगरी जवा माटे अंधाधुंध ने क्रिया करवी ते युक्त नथी. समजीने ते प्रमाणे करवायी घणो फायदो थाय छे.
प्रश्न-मंत्र जे होय छे तेनो अर्थ जाण्याविना पण मंत्र भण्याथी फलनी सिद्धि थाय छे. तेम समज्याविना पण क्रिया करवाथी इष्ट फळनी सिद्धि थाय छे तो तेनुं केम ?
उत्तर-मंत्रनी बाबतमा तमोए कयुं ते जाण्युं, मंत्रोना
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