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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - एकला ज्ञान की मुक्ति थवी दुर्लभ छे. जैम कोइ माणस जाणे छे के- अमदावादथी पालीताणाए जात्रा करवा सारु ज होयतो अमुक रस्ते थइने जवाथी पहचाय छे एम पोते जाणे छे, पण चालवानो प्रयत्न करतो नथी तो शी रीते पालीताणे पहोंची शके ? हा अलबत पहोची शके नहीं. तेम ज्ञानी ज्ञानवडे जाणे छे के मोक्षनगरीमां जनुं होय तो ते नगरना वे रस्ता छे तेमां एक मोटो रस्तो छे. ते रस्ताए थइने जतां वहेलुं पहोंची शकाय छे। अने बीजो रस्तो नानो छे, ते रस्ताए थइने जतां घणीवार लागे छे. एम पोते जाणे छे छतां ते रस्तामांना कोइ पण रस्ताए करी जवाने माटे प्रयत्न करतो नथी तो ते जाणवाथीज मात्र मुक्ति नगरीए शी रीते पहोंची शके ? जो ते बे रस्तामांना कोइ पण रस्ताए थइने जावानी क्रिया करे तो मुक्ति नगरीमां पहोंची शके. माटे क्रिया करवी पण आवश्यक छे. हवे मुक्तिनगरी जवाना बे रस्ता कहे छे. १ एक देश विरतिपशुं एटले श्रावक धर्म अने २ बीजं सर्व विरतिपणुं एटले साधु धर्म ए वे रस्ता छे. शक्ति होय तो साधुवत अंगीकार करवाथी आसन्न मुक्ति नगरीमां पहोंचाशे अने साधु व्रत पाळवानी शक्ति ना होय तो श्रावकनां बार व्रत अंगीकार करवां ते बे पण जो थइ शके नहीं तो समकितनी सहहणा करवी. शुद्ध देव, शुद्ध गुरु अने शुद्ध धर्मनी श्रद्धा करवी. आ समकित पण मोक्ष सुख आपना समर्थ छे, ए त्रण विना मोक्ष नगरीमां जवा माटे चोथो रस्तो देखातो For Private And Personal Use Only
SR No.008522
Book TitleAnubhav Panchvinshtika Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1902
Total Pages249
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size11 MB
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