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१७ परमात्मा एटले परमेश्वर रुपे थइ शके छे. आत्मानुं स्वरुप स्याद्वाद रीते करी गुरुगम द्वारा जाणवू. जाण्या बाद, आश्र. वनो त्याग करवो. का छे के-ज्ञानस्य फलं विरतिः आत्माना स्वरुपर्नु ज्ञान थया बाद, व्रत, पञ्चख्वाण चउद नियम धारवा, पंच महाव्रत धारण करवां, श्रावकनां बारव्रत धारण करवां, सामायिक प्रतिक्रमण करवू, मभु पूजा करवी. इत्यादि विरति पण प्राप्त थाय छे अने विरतिनुं फळ निर्जरा छे. अने कर्मनी निर्जरा थतां आत्मा कलंक रहित थइ मोक्षगति पामे छे, माटे आत्म स्वरुप ओळखवा प्रयत्न करवो.
प्रश्न-ज्ञान थकीज मोक्ष थाय तो पछी क्रिया करवानी शी जयर छ ?
उत्तर-ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः ज्ञान अने क्रियावडे करी मोक्ष छे पण फक्त एकला ज्ञानथी मुक्ति थती नथी, ज्ञानवडे करी नवतत्त्व, सातनय, सप्तभंगी, षड्द्रव्य, चारनिक्षेपा विगेरे जाणे, निगोद नरक तिर्यंच देवताना भेद तथा तेमनुं स्वरुप जाणे, मोक्षनुं स्वरुप जाणे, आत्मा कर्मथी दुःखी थाय छे एम जाणे, अने कर्मनो नाश संवर थकी छे, एम जाणे, पण संवरनी करणी करे नहीं अने आश्रय सेवेतो तेनी मुक्ति शी रीते थाय ? अलबत थाय नहीं. ज्ञानवडे करी आश्रवने शत्रु भूत जाणी छंडे, अने व्रत पचख्खाण, सामायिक व्रतआदि धर्म क्रिया करे, ज्ञानाभ्यास करें तो कर्मनाश थइ शके. पण
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