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चांचवां-जेथी समकितनी श्रद्धा थाय, तेवां पुस्तको पांचवां अने जेथी आत्मा शांति पामे तेवा पुरुषोनी संगति करची, सारं शरीर होय तो धर्म सारी रीते साधन करी शकाय छे, ते पण एक निमित्त छे. आत्मार्थी जीवोए, स्त्रीनो संग विशेष करी त्याग करवो जोइए, अने पोता, जेम हित थाय तेम प्रवृत्ति करवी जोइए.
दुहा. सत् संगम जो पामीए, प्रगटे पुण्य पसाय ॥ कारणे कारज नीपजे, वादळने जेम वाय॥६॥
मोटा पुन्यना योगे सत् समागम थाय छे. सत समागम यतां आत्माना मूळ स्वभावतुं ज्ञान थाय छे अने आत्मा जाणे छे के अहो में आटलो काळ अज्ञानदशामा गुमाव्यो. हुं परवस्तुमां सुखनी भ्रांति करुंछं. पण परवस्तु जे पुद्गल ते मर नथी. ते पुद्गल द्रव्य थकी हुं न्यारो . पुद्गल जड वस्तु छे तेनी संगत करवाथी हुं चोराशी लाख जीवायोनिमां महा रौरव दुःख भोगवतो छतो रझळु . ए पुद्गल द्रव्यनी संगति करवी सारी नथी. रु', सोनुं हीरा मोती, कर्म, ए सर्वपुद्गळ द्रव्य छे, ते आत्माथी भिन्न छे, अने आत्मा पुद्गलद्रव्यथी भिन्न छे, आत्मा अरुपी छे अने पुद्गल द्रव्यरुपी छे. तो रुपी द्रव्यसाथे अरुपी जे आत्मा तेने संगत करवी घटती नथी. पुद्गलद्रव्यनी आत्माथको भिन्न जाति छे. अने
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