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दुहा. द्रव्य क्षेत्रने काल भाव, योगे धर्म सधाय ॥ निमित्त सेवो शुद्ध जेम, कर्मकलंक कटाय ॥ ५॥
भावार्थ- द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव योगे धर्म साधी शकाय छे. हे भव्यजीवो ! शुद्ध निमित्तने सेवो के जेथी आ त्माने लागेलुं कर्मकलंक दूर थाय सुझो ! याद राखो के सारा निमित्तना योगे आत्मा धर्मध्यान अने शुक्रुध्यान ध्याइ शके छे, हालना वखतमां शुक्लध्याननो विरह छे तोपण धर्मध्यानतो: छे. सत्संगत करवी ए धर्म साधन करवामां उत्तम कारण छे, जेना संगे आत्मा आर्त्त ध्यान अने रौद्रध्यानयां पडे तेषु निमित्त त्याग कर जोइए, जेवां जेवां निमित्त मळे छे वो वो आत्मा थइ जाय छे; जेम पत्थराने सूर्यनो ताप लागतां पाषाण उष्ण थइ जाय छे अने रात्रीना वखतमी श्रीयाळामां ठंडकना पुद्गलोनो संयोग थतां पत्थर ठंडो थ जाय छे, तेम आत्माने वैरागीनी संगति थवाथी आत्मा वैराग्य पामे छे, अने आत्माने मिथ्यात्वीनी संगति थतां विपी यह जाय छे. एज कारणथी श्री तीर्थंकर महाराजाए आशा करी छे के अन्यदर्शनानो परिचय करवो नहि. संगत तेवी असर थाय छे माटे कर्म वधवानां कारणोनो स्वाग की कर्म नाश पाने तेवां कारणो मेळववां जोइए. वारंवार सद्गुरु वाणी सांभळवी, वैराग्य कारक पुस्तकों.
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