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"एक समयमा अवक्तव्य छे, नास्तित्वधर्म पण अवक्तव्य छ,, अस्तित्व अने नास्तित्व धर्म पण अवक्तव्य छ, एवं द्रव्ययी क्षेत्रथी काळथी भावथो सप्तभंगी जाणवी.
द्रव्यथकी घट माटी, त्रांवा सोना रुपा प्रमुखनो जाणवो, क्षेत्र थकी अमुक नगरनो, कालथकी वर्षाकालनो, शीतकालनो, उष्णकाळनो, इत्यादिक भावथी नील, पित्त, कृष्ण, रक्त, धेत इत्यादिक जाणवो. द्रव्यतः मृन्मयः ताम्रमयः स्वर्णमयः क्षेत्रतः काशीयः वाणारसीयः राजगृहीयः पाटलीपुत्रीयः कालतः वर्षाकालीयः उष्णकालीयः कार्तिकमासीयः भावतः नीलोयं पीतोयं श्यामोऽयं घटः इत्यादिक प्रयोगः एम सप्तभंगीना अनेक भेद थाय छे. स्यादादो यत्र तत्र स्यात् सम्यक्त्वं प्रतिपादितं । एकांतेनैव मिथ्यात्वं वीतरागेण भाषितं ॥१॥ ज्यां स्यावाद छे, त्यां धर्म छे; एकान्ते मिथ्यात्व छे. जे पुरुषने विषे स्याद्वाद होय, त्यां सम्यक्त्व जाणवू. प्रत्यक्ष प्रमाण बलिष्ट छे, प्रत्यक्ष प्रमाणना धणी अवधिज्ञानी मनः पर्यवज्ञानी कैवलज्ञानी जाणवा. वर्तमान काले आगम प्रमाणछे. अनुमान प्रमाण उपमान प्रमाण, तथा शब्द ए त्रण परोक्षना भेद छे. मति अने श्रुत ज्ञान परोक्ष ज्ञान छे. इत्यादिक प्रमाणनां लक्षण ज्ञानी जाणे छे, अने स्वात्महितमा प्रवृत्ति करे छे अने मोहमायानो त्याग करे छे.
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