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१७५ जाय नही. जे पर्याय आविर्भावे प्रगटपणे छे तथा तिरोभावे पर्याय छे. ते अस्ति नास्ति रुपे ग्रहाय छे. पण एकांते कहेचाय नही स्यात् पदे करी सर्व धर्मर्नु कथंचित् ग्रहण थाय छ. तेना द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावे करी कोडी गमे भांगा थाय ते पण सर्वनो सप्तभंगामध्ये अंतर्भाव थाय छे. ते सप्तभंगी देखाडे छे. __ स्यादस्त्येव घटःऽ १ स्यानास्त्येव २ स्याद वक्तव्य ३ स्यादस्त्येवस्यान्नास्त्येव ४ स्यादत्ये वस्यादवक्तव्यम् ५ स्यानास्त्येव स्यादवक्तव्यम् ६ स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येव युगपदवक्तव्यम् ७ स्यात् अनेकांत वाची अव्यय कहीए. एकांत ते सर्वथा पर पर्यायनो निषेध करवो, जे सर्वथा पर पर्यायनो निषेध न करवो ते अनेकांत कहीए, पोताना द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावनी अपेक्षाए घटनुं अस्तित्व छे. घटमां वर्णादिक धर्म छे, ते मध्ये कृष्ण वणे एक गुणो काळो, बे गुणो काळो, यावत् असंख्यात गुणो काळो अनंत गुणकाळो वर्ण रह्या छे. ते गुणर्नु घटमां अ. स्तित्व छे. बीजो रक्त घट तेमा रहेला, वर्ण, गंध, रस, स्पर्शनुं क. ष्ण घटमां नास्तित्व रह्यं छे. अस्ति अने नास्ति धर्म एक समयमां रहेलाछे, ते पण एक समयमां कथन कर्या जाय नहीं यावत् असंख्याता समयमां पण कही शकाय नही. माटे एबे भांगा
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