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चाय तेने धम कहेनामां आवे छे. जिनेवर भगवाने कहेला तत्वो सूक्ष्मबुद्धिथी विचारतां सत्य मालुम पडे छे. माटे तेमणे कहेलो धर्म सत्य छे. वीजा वादीओ एकांतपणे अने अज्ञानथी प्ररुपेला तत्त्व असत्य छ, तेनुं विशेष स्वरुप स्याद्वादमंजरी, नंदीसूत्र-सूयगडांगसूत्र विगेरेथी जाणवू.
दहा. द्रव्यभाव बेभेदथी, धर्म कहे जिनराय ॥ भाव धर्म ते आतमा, सेवो भवि सुखदाय ॥२॥
भावार्थ-जिनेश्वर भगवाने द्रव्य अने भाव ए बे भेदे धर्म प्ररुप्यो छे. भाव धर्मनुं जे कारण तेने द्रव्य धर्म कहे छे. द्रव्य धर्म विना भाव धर्मनी उपपत्ति ( सिद्धि) थती नथी. जिनेश्वर भगवाननी पूजा करवी, नवकारशी करवी, वैयाक्च कर, दान देवू, परमेश्वरनी प्रतिमा भराववी इत्यादिक जेथी आत्मा निर्मळ थाय छे, तेने द्रव्य धर्म कहे छे, अने आत्मामां रहेला ज्ञान, दर्शन, चारित्र गुणोनी प्राप्ति तेने भाव धर्म कहे छे. द्रव्य धर्मविना जे भाव धर्म आराधे छे ते घहुं अने गोळ विना लाडु बांधनार जाणवा. माटे द्रव्य धर्म अने भाव धर्मर्नु अनुक्रमे आराधन कर ते हितकारक छे. पुण्वनी करणी करवी ते पण द्रव्य धर्म छे. पुण्यथी सारा कुळने विष अवतार मळे छे, अने पुण्यथी देव गुरु धर्मनी जोगवाइ मळी शके छे, माटे. सापेक्ष बुद्धिथी पुण्यनी करणी पण हितकारक
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