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रहेला पदार्थने संपूर्ण रीते जाणी शके छे, अने ते प्रमाणे दरेक पदार्थोंनुं स्वरुप प्रकाश्युं छे. तेथी अमो कहीये छीए के - जिनेश्वर भगवाने कहेलो धर्म सत्य छे, जेनामां राग द्वेष नथी, तेने जिन कहे छे. अनंत ज्ञान होवाथी अने राग द्वेष रहित होवाथी मैंने जुटुं बोलवानुं प्रयोजन नथी. जिनेश्वर भगवंते समवसरणमां बेशी नवतत्र प्रकाश्यां छे, तेनां नाम.
गाथा.
जीवा जीवा पुण्णं पावासव संवरोय निज्जरणा ॥ बंधो मुखखोय तहा नवतत्ता हुंति नायव्वा ||१||
१ जीवतच २ अजीवतत्त्व ३ पुण्यतत्त्व ४ पापतत्त्व ५ आश्रवतत्व ६ संवरतत्त्व ७ निर्जरातच्च ८ बंधतत्त्व ९ मोक्षतत्त्व ए९ नवतत्त्व प्रकाश्यां छे. दशसुं तत्त्व कोइ जणातुं नथी.
जीव अनंता छे अने ते चारगतिमां भटक्या करे छे, जीवने चारगतिमां भटकवानुं कारण कर्म छे, कर्म बे प्रकारनुं छे. १ शुभ कर्म अने २ अशुभकर्म. शुभकर्मथी राज्यरिद्धि, पुत्रपरीवार मनुष्यगति, देवतानी गति, इत्यादि पामी शकाय ले. भव्य जीवोने पुण्यकर्म सापेक्ष बुद्धिथी मोक्षलक्ष्मी पामवामां साहायकारी थाय छे. पापकर्मथी दुःख मळे छे, अने ज्यारे शुभाशुभकर्मनो नाश थाय छे, त्यारे आत्मा मुक्तिपद पामे छे एम श्री तीर्थंकर महाराजाए भव्य जीवोना हित भ्रणी नवतत्त्वनुं स्वरुप बताव्युं छे. जीवनी मुक्ति जेथी
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