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तेणे कडं के हुं साधु छ, तमो श्रावक छो तेम छता मने केला मारो छो ? त्यारे श्रावके कां, तमे साधु हता तेतो प्रथम अणमां नाश पाम्या. हवे, कोण जाणे तमे साधु छो के चोर छो ? कारणके तमारो एवो मत छे, के क्षणमां देवता, नारकी बगेरे नष्ट थाय छे, तेम तमे पण साधुः हता त क्षणमां नष्ट श्रया हवे साधु छो एम तमारे पोताने मानवू ए तमारा मत प्रमाणे युक्त नथी. आ वाक्योथी अश्वामित्र समज्या अने मत कदाग्रह त्याग कर्यो गुरुने पगे लाग्या. ए चोथो सामुछेदिक नामा निन्हव. ४ ___ अथ पंचम निन्हव वृत्तान्तः श्रीमहावीर स्वामीना निर्वापथकी २२८ बसें अठावीस वर्षे श्रीआचार्य महागिरिना शिष्य घन नामा उल्लका नदीना पूर्व काठे गाममां चोमासुं रहा छे, अने उल्का नदीना पश्चिम काठे गंगा नामना शिष्य चतुर्मास रया छे. त्यां थकी शरद् रुतमा गुरुने वंदन करवा आवता मार्गमां नदी उतरतां माथे टाल हती, ते उपर घणो तहको लाग्यो अने पगे नदीतुं पाणी ठंडु लाग्यु, ते समये मिथ्यात्व उदय थयो मनमा विचार्य के जुगवं दो नथि उवओगा श्री सिद्धान्त मध्ये एक समयमां के उपयोगनो निषेध कर्यो छे, ते खोटं छे, कारण के हुं साक्षात् एक काले बे क्रियानो उपयोग अनुभबुंछु माथे उष्णता अनुभवु छु, अने पगे शीतलाता अनुभवू . एक समयमां उष्ण अने शीत ए ब्रेनो उपयोग अनुभवु छु, एम निश्चय कयों, गुरु पासे आनी चर्चा
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