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धुझ्ने साधुने केम मारे छे. त्यारे राजाप कडं कोण जाणे तमे साधु छो के चोर छो ? के देवता छों ? हुं पण श्रावक छं के देवता के चोर छु ते कोण जाणे ? इत्यादिक युक्तिथी ने शिष्यो प्रतिबोध पाम्या अने स्थविर साधुओने पगे लाग्या पोतानो कदाग्रह मूक्यो, प्रायश्चित लइ शुद्ध थया. ___अथ चतुर्थ निन्हव वृत्तांत-श्री महावीर स्वामीना निवार्ण पछी २२० बसेने वीश वर्षे श्री मिथिला नगरीना लक्ष्मीगृह उद्यानमां श्री महागिरि शिष्य कोडिन्य नामना छे, तेमना शिष्य अश्वमित्र छे, ते अश्वमित्र एक वखत अनुमवाद पूर्वन नैपुणिक नामक वस्तुनो आ आलापक भण्या. यथा, सब्बे पडु पम नेरइया वुछिजिस्सन्ति एवं जाव वेमाणियंति, ए आलावानो अर्थ आ प्रमाणे छे. वर्तमानकाल समयनो जे नारकी छ, ते वीने समये विनाश थाय छे. एटले प्रथम समय विशिष्ट जे नारकी हता तेहज नारकी बीजा समयने विषे द्वितीय समय विशिष्ट थया. अर्थनी तेने समजण पडी नहीं तेमनामनमा एम आव्यु के, जे जीव पाप करे छे, ते पण नाश पाम्या छे जे जीव पुण्य करे छे ते. पण नाश पामे छे. अश्वामित्र विहार करतो राजगृही नगरी प्रति आव्यो, देव लोकमां देवता पण क्षणमां नाश पामे छे अने नारकी पण क्षणमां नाश पामे छे, क्षणमां पुण्य अने पापनो क्षय थाय छे. ए प्रमाणे क्षण क्षयवादनी प्ररुपणा करवा लाग्यो. ते नसरीमां खंडरक्षनाममो श्रावक छे, ते श्रावक तेमने पकडी मारवा लाग्यो स्यारे
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