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तेजो लेश्या, पद्मलेश्या, शुकललेश्या, ए छ लेश्याथी न्यारो, मनयोग, वचनयोग, अने काम योगथी न्यारो, वन रुषभनाराच संघयण आदि छ संघयणथी न्यारो, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र, अने अंतराय, ए आठ कर्मथी न्यारो, औदारिक वर्गणा, चैक्रिय वर्गणा, आहारक वर्गणा, तेजस वर्गणा, भाषा वर्गणा, श्वासोश्वास वर्गणा, मनोवर्गणा अने कार्मण वर्गणा ए आठ वर्गणाथी न्यारों रागद्वेषमय अशुद्ध परिणतिथी न्यारो, आत्मा अरुपी, अनंत शक्तिनो धणी छे. अनंत गुणनो आधार छे. पुद्गलास्तिकायथी भिन्न आत्मद्रव्य छे. ते आत्मा आंखथी देखातो नथी. नाकथी मुंघातो नथी, कानथी आत्मा सांभळी शकातो नथी, जे संभळाय छे, ते शब्द पुद्गळ छे, अने ते शब्दथी वाच्यार्थ- जे ज्ञान थाय ते अरुपी छेपंच द्रव्यथी आत्मा भिन्न छे, जे जे वस्तु आंखे देखाय छे, ते पुद्गल छे, अने तेथी आत्मा न्यारो छे, शरीरमां व्यापी रह्यो छे, खीर नीरनी पेठे, तोपण आत्मा भिन्न छे, भव्यजीवन शरीरनो संबंध, मोक्ष जाय त्यारे अनादि सान्त भांगे छे, अने चार गतिमां शरीर मूके, ग्रहण कर तेनी अपेक्षाए शरीरनो संबंध सादि सान्त भांगे छे, अभव्य जीवने शरीरनो संबंध अनादि अनंतमा भांगे छे, पांच प्रकारना शरीरमां षट् गुण हानि पृद्धि दरेक समये जीव जीव प्रति थइ रही छे, चार गतिमां परिभ्रमण करतां पांच प्रकारनां अनेक शरीर धारण कर्या, दरेक
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