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शरीर जुदा जुदा प्रकारनां छे, वर्ण, गंध, रस, स्पर्शथी षड् गुण हानि वृद्धि दरेक शरीरमां बनी रही छे, पांच इंद्रियो पण दरेक भवमां जुदा जुदा प्रकारनी जीवे धारण करी, तेमां पण षड् गुण हानि वृद्धि समये समये बनी रही छे, त्रणबल पण दरेक, जीव प्रति जुदा जुदा प्रकारनां छे. कोइ जीवनुं ? मनोबल विशेष होय छे, ४ कोइनुं वचन बल थोडं होय छे, ५ कोइनुं कायबल विशेष होय छे, ६ कोइरॉ कायबल हीन होय छे, २ कोइनुं मनोबल अल्प होय छे, ३ कोइनुं वचन बल विशेष होय छे, श्वासोश्वास अने आयुष्य संबंधी पण तेम समजी लेवू, मनयोग-पण जीव जीव प्रति जुदा जुदा प्रकारनो होय छे. वचन योग पण जीव जीव प्रति जुदा जुदा प्रकारनो होय छे, काय योग पण जीव जीव प्रति
जुदा जुदा प्रकारनो होय छे, प्रत्येक योगमां षट् गुण हानि वृद्धि रही छे. द्रव्यकर्म ज्ञानावरणीयादि आठ कर्म तेनो कर्ता आत्मा व्यवहारनयथी छे, अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनयथी द्रव्य कर्म कर्ता चेतन जाणवो. राग द्वेष भाव कर्म छे, तेनो कर्त्ता आत्मा अशुद्ध निश्चयनये करी छे, पण ज्यारे आत्मा स्वरुप ओळखे छ, पोतानामां रहेला गुण पर्यायने जाणे छे, ते वखते तेनी विचित्र दशा थाय छे, परवस्तुने पोतानी मानी अने अनंतकाल संसारमा चार गतिमां भटक्यो, तेनो पश्चाताप थाय छे, अने सिंह जेम पांजरामांथी छूटवा प्रयत्न करे छे तेम अनंत शक्तिनो धणी आत्मा कर्म पिंजर
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