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स्वरूपना ज्ञाता, आत्म तत्वने स्याद्वाद रीत्या जाणनार सप्तभंगी आदिथी आत्मामा रहेला अनंतगुणोनो अनुभव करनार ज्ञानी पुरुष पोताना मनमां हर्ष पामता नथी. ज्ञानी. अने मुढना लक्षण बतावे छे.
दुहा. प्राण दशने योगथी, न्यारो चेतनराय । द्रव्य कर्म व्यवहारथी, कर्त्ता आत्म कहाय ॥१॥ नय निक्षेपा भंगी, जेने छे शुद्ध ज्ञान । गुरु परंपर अनुभवी, भवजलधि ते यान ॥२॥ ज्ञान क्रिया दोउ ग्रहे, निषेधे नहीं एक । व्यवहारे वर्ते सदा, निश्चयनी शुद्ध टेक ॥ ३॥ द्रव्यादिकचउ भावथी, जाणे वस्तु स्वरुप । नवतत्त्वादिक जाणतो, पंडित तेह अनूप ॥४॥ श्रद्धा ज्ञान विवेकथी, जाणे जे षड् द्रव्य । सूत्र पंचांगी सबहे, पंडित आसन्न भव्य ॥५॥
पांच इंद्रिय, त्रण बल, श्वासोश्वास, अने आयुष्य; ए दश पाणथी न्यारो, औदारिक, वे क्रिय, आहारक, तेजस, अने कार्मण, ए पांच शरीरथी न्यारो, शरीरमा वर्तनार पण शरीरथा न्यारो, कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या,
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