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संगभव ३ रहियं । इगतसिगुण समिद्धं सिद्ध बुद्धं जिणं नमिमो ?
पांच संस्थान, तिक्त, कटु, कषाय, आम्ल, मधुर, ए पांच रसः कृष्ण, नील, पोत, रक्त, श्वेत, ए पांच वर्णः सुरभि, अने दुरभिगंध १ गुरु, २ लघु, ३ मुकुमाळ, ४ कर्कश, ५ शीत, ६ उष्ण, ७ स्निग्ध, ८ रुक्ष. ए आठ स्पर्शः १ स्त्रीवेद, २ पुरुषवेद, ३ नपुंसकवेद, शरीर संग अने परवस्तु संग अने जन्म ए एकत्रीश उपाधिथी रहित सिद्ध भगवान् छे. पांच संस्थान रहित, पांच वर्ण रहित, पांच रस रहित, सिद्ध भगवान् ले, वे गंध रहित सिद्ध भगवान छे. आठ स्पर्श रहित सिद्ध भगवान् छे; त्रण वेद रहित सिद्ध भगवान् छे, शरीर संग रहित परवस्तु संग रहित, अने भव एटले जन्म रहित, सिद्ध भगवान् ए एकत्रीश गुणे करो बिराजीत स्व सत्ताए रहे अनंत सुख तेना भोक्ता सिद्ध भगवान् छे; तेमने जे सुख छे ते तेज जाणे छे; वा आत्मज्ञानीओ तेनो यत् किंचित लेश अनुभव ज्ञानथी जाणे छे.
दुहा.
मृतकलेवर देखीने मनुष्य हर्ष न पाय । मूढ निहाली अनुभवि मन हर्षित नवि थाय १६
मृत कलेवर देखीने मनुष्यने हर्ष उत्पन्न थतो नथी, तेम मूर्ख महान् आत्म स्वरुपना अजाण बहिरात्माने देखी आत्म
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