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संगतिथी तमो तमारी अनंत शक्ति गुमावी बेठा छो, रंक जे वा बनी गया छो, तमारी दुःखकारक स्थिति जोइने मने रडवू आवे छे, तमारुं सर्व धन तमो हारी बेठा, तमारी गुणरुप रिद्धिनो त्याग करी गांडा माणसनी पेठे सोनु, रुघु, घर, महेल, स्त्री पुत्रादिकने रूद्धि तरीके तमो मानो छो. आ ते केवी स्थिति.कहेवाय ? __आत्मपति-ओ मारी प्राणप्रिया वल्लभे! मारुं धन साचवनारी-अने असंख्यात प्रदेशरुप घरने कर्मरुप कचरो काढी नांखी निर्मळ राखनारी! अने पोताना पति विना अन्यनी साथ नहीं संबंध राखनारी ! हवे मने तारा विना बीजानी संगति रुचती नथी. हुं धन रहीत थयोछं, घणां संकट वेटुंछ, अने चार गतिमां भटकुंछु, तोपण हवे तारा विना बीजानी. संगति मने सारी लागती नथी, माटे हवे हुं शुं करुं के जेथी परमात्मा सिद्ध भगवान् के जे मारा भाइ . थाय छे. तेनी सरखो थाउं.
शुद्ध चेतना स्त्री-मारा व्हाला पति ! तमारी आवी दुर्दशा जोइने मने दुःख थाय छे, तमारा दुःखथी हुँ पण दुःखी थइछु, तमारा सिद्ध भ्राता केवां सुख भोगवे छे. अनंत मुख समये समये भोगवी रह्या छे, अने तमारे तो तेनो लेश भाग पण नथी, अहो तमारी केवी कंगाल स्थिति थइ गइ छे. !
आत्मपति-मारी व्हाली स्त्री ! तुं हवे मारी आवी स्थिति
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