________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धन आविर्भावे ययुं छे, मारुं अनंतगुण रुप धन तिरोभावे - कायुं छे, अरे हुँ ममता रुपी वेश्यानी संगतिथी पोतानुं धन हार्यो, अने भीखारी थयो छत्तो नाटकीयानी पेठे चार गति. मां विविध शरीररुप वेश पेहेरी दीनता दाखवी, ममताना जोरे बाह्य धननी भिक्षा याचं छु, तेने पामी मलकाउंछु अने वळी क्षणमां दुःखी थाउं छु, क्षणमा रुदन करु छु, अहो वेश्याए म्हारं सर्वस्व आत्मिक धन हरण कयु, मारूं उत्तम कुळ, सिद्ध भगवान् सरखा तो मारा भाइ थाय, छतां हुं केम दुःखी थाउं छु ? अरे ! अशुद्ध परिणतिरुप वेश्याए भने असत्य वस्तुमां मोह पमाडयो, मारी शुद्ध चेतनारुप स्त्रीनी संगति त्यागी, अने अशुद्ध परिणति रुप वेश्यानो संग कर्यो, तेथी हवे शुद्ध चेतना मारो संग करश के नहीं, तनी पण शंका रहे छे, हवे अशुद्ध परिणति रुप वेश्याना गृहमांथी निकली पोताना असंख्यात प्रदेशरुप घरमा रसुं, एटले शुद्ध चेतनारुप स्त्री ते घरमां छे तेनो मेळाप थशे, एम चितवी आत्माए पोताना घरमां प्रवेश कर्यो, त्यां शुद्ध चेतनारुप स्त्री भर्ता विरहथी दुःखी थएली दीठी.
आत्मा कहे छे,हे मारी माणवल्लभा शुद्ध चेतना ! तुं केम दुःखी देखाय छे ? तेनुं शुं कारण छ ?
शुद्ध चेतना कहे छे, हे आत्मपति तमोए अनादि कालथी मारो संग त्याग कर्यो छे अने अशुद्ध परिणतिरुप वेश्यानी
For Private And Personal Use Only