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पोतानी मानी विष्टाना कीडानी पेठे विष्टामां रुचिवंत, शुकरनी पेठे अनादिकाळथी दुःखने सुखरुप मानी परने पोतानुं मानी बाह्य धन धान्यादिकने पोतानुं मानी रागद्वेषने जोरे संसारमां मवृत्ति कर्या करतो हतो, ते प्रवृत्तिने पोतानुं स्वरूप समज्या बाद खोटी दुःखदायी भवभ्रमणहेतुभूत जाणी तेनां संगदूर कर्यो एटले संसार प्रवृत्ति स्वतः बंध पडी. कारणके प्रवृत्तिं कर्त्ता आत्माए पोते असार जाणी तेनो त्याग कयों एटले तेनुं जोर कइ चाल्युं नहीं, अने संसारिक पदार्थों उपर उदासीनता प्रगट थइ, विवेक रुप सूर्ये करी आत्मानुं शुद्ध स्वरुप जाण्युं, सत्यासत्यनो विवेक त्रगटयो, आत्मामां रहेला अनंत गुण रुप खजानो प्रत्यक्ष देखवामां आव्यो. अहो ! परमात्मा सिद्ध भगवान्, अनंत गुणरुप खजाने करी परिपूर्ण थया छतां अनंत सुखमां सादि अनंत स्थिति निर्ममे छे. बाह्यधन जे धान्यादि पुद्गलरूप तेनो प्रभुने संग नथी. बाह्य धनथी रहितने अभ्यंतर अनंत धन वडे करी सहीत श्री तीर्थंकर भगवान् छे. बाह्य घन जे सुबैग, मोती, रुपुं छे ते जड छे, विनाशी छे. पुद्गल छे, सडण, पडण, विध्वंसन स्वभात्ररूप छे, ते कोइनुं
युं नथी, थवानुं नथी. तेनी ममताथी अरे में म्हारा सत्य अभ्यंतर धन उपर दृष्टि दीधी नहीं अने तेने प्राप्त करवा मयन पण कर्यो नहीं. हवे विचार थयो के त्यारे हवे मारे अभ्यंतर धन उपर दृष्टि देवी जोइये, परमात्मानुं अनंत गुण रुप
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