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चारंवार मने कही बताव नहीं, कारण के मने शरम आवे छ। हवे हुँ कदी अशुद्ध परिणतिरुप वेश्या के जेना वशमां सकल जीवो मृगनी पेठे थया छे, गांडा बनी गया छे, तेनी संगति करीश नहीं, एम खात्रीथी कहुंछु.
शुद्ध चेतना स्त्री-मारा पूज्य आत्मपति ! हालतो तमो ठेकाणे आव्याछो, पण घडीमां पाछा तेना पासमां सपडाइ जशो. कारण के-तृष्णा, विषय पिपासा-रुप दासीओ वेश्यानी तमने ललचावी वेश्यानी पासे क्षणमां लेइ जशे, ते वखते पाछा कूतरानी पुंछडीनी पडे हता, तेवाने तेवा थइ जशो, मने जरा मात्र पण याद करशो नहीं, विषयरुप दारुना प्याला भरीभरीने अविवेकरूप खाट उपर बेशीने वेश्यानी संगतिथी पीशो, अने गांडा बनी जशो. आ मारी स्त्री, आ मारो पुत्र, आ मारो शत्र, आ मारी मा, आ मारं धन, आ मारुं भोजन एम मुखथी लवारो करशो. अने क्रोध, मान, माया, लोभरुप चोरो तमो गांडा बनी गया के तुरत तमारुं धन हरण करवा मंडशे. तमने भान रहेशे नहीं के मने चोरो लूटे छे. अने हुँ लूयाउछु. ममतारुप कटारथी तमारु गळु कापी नांखशे, अने अंते दुःखी थशो, माटे पेहेलांथी हे आत्मपति ! हुं तमने कहुंछु के अशुद्ध परिणतिरुप वेश्यानी तृष्णा तथा विषय पिपासारुप दासीओ तमारा हृदयमा प्रवेश करी तमने वेश्यानी पासे खेंची लइ जशे, माटे तमो तेनो विश्वास राखशो नहीं. अने तेने आववाना रस्ता बंध करी मारी साथे असंख्यात प्रदेशरुप
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