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सच्चिदानंद स्वरुप, स्वक्षेत्रवंत, स्वकालवंत, स्वभाववंत, द्रव्यास्तिकनयापेक्षया नित्य, पर्यायास्तिकनयापेक्षया अनित्य, गुण पर्यायपणे नित्यानित्य, स्वसत्तावंत, परसत्ता रहित, पंच द्रव्यथी भिन्न, स्वस्वभावना को, पर स्वभावना अकर्ता, अपर, एक, अनेक, अनंत गुण करी विराजमान, सिद्ध भगवान् छे, जेणे एक सिद्धनुंम्वरुप जाण्यु, तेणे अनंत सिद्धनुं स्वरुप जाण्यु एक सिद्धन स्वरुप जेणे जाण्यु नथी तणे अनंत सिद्धनुं स्वरुप पण जाण्युं नथी. ए स्यादवाद मार्ग रहस्य छे. यतः एकोभावः सर्वेथायेन दृष्टः सर्वे भावाः सर्वथा तेन दृष्टाः इति स्याद्वाद मंजया अनेकान्त मार्गनी वलिहारी छे, अनेकांत मार्गावबोध विना सम्यकत्वनी प्राप्ति थइ शकती नथी. आप्त प्रणीत सि. द्धान्तोने भणवां, गणवां, तेमना वचनानुसारे धर्ममां प्रवृत्ति करवाथी मोक्ष स्थाननी प्राप्ति थाय छे.
हे शिष्य ! सिद्धनुं यत् किंचित् वर्णन देव तत्वना प्रमगयी कथन कर्यु छे.
देव, तीर्थकरने एकज जाणवा, अने देवनेज अरिहंत कहेवाय छे.
प्रश्र-अरिहंत कयां सुधी थशे अने कयारथी अरिहंत भगवान् थाय छे ?
उत्तर-हे भव्यात्मा, अरिहंत भविष्यत् अनंतकाल सुधी थशे. अने अनादिकालथी अरिहंन भगवान् थाय छे. अने हाल पण अरिहंत भगवान् छे. .
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