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जाणवू, वेदनीय कर्मनो नाश थवाथी बाधा पीडा रहीत अव्याबाध मुख उत्पन्न थयुं छे. त्रणे काळमानां देवतानां अने मनष्यनां पौद्गलिक मुख भेगां करीए तो पण आत्मिक मुख ना लेशनी बरोबर नथी, पौद्गलिक सुख विभाविक छ, अने आत्मिक सुख स्वाभाविक छे. मोहनीय कर्मना नाशथी क्षायिक सम्यक्त्व सिद्ध भगवंतने छे, चारे गतिर्नु आयुष्य सादि सान्त भांगे छे. आयुष्य कर्मनो नाश थवाथी सिद्ध भगवंतने अक्षय स्थीति प्राप्त थइ छे. मोक्षमा गएलो जीव त्यांथी कोई दिवस संसारमा पाछो आवतो नथी, मोक्षमाथी चववाना नथी, मोक्षनी गति. पाम्या बाद जन्म धारण करवो पडतो नथी.
प्रश्न-मोक्षमां गयाबाद सिद्धना जीवो अहीं शा कारगयी आवता नथी, मोक्षमांथी मनुष्यनी दुःख कापवा अही आवे तो शी हरकत तेमने थाय ?
उत्तर-मोक्षमां गयाबाद सिद्धना जीवो निष्क्रिय थाय छे, मुख्यताए आत्मानो अक्रिय गुण छे, पुद्गल संबंधथी आत्मा सक्रिय हतो. किंतु मोक्षमां गयाबाद निष्क्रिय आत्मा होय छे. तेथी त्यांथी अहीं आवी शकता नथी, बीजानां दुःख देखीने अहीं आववानी मरजी पण थती नथी. कारणके इ. च्छानो नाश थयो छे, निष्क्रिय सिद्धना जीवो गमनागमन करी शकता नथी. गमनागमन करनारने सिद्ध भगवंत कहेवाय नही..
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