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संसारी जीवोनी सर्वनी मुक्ति थवानी नहिं. ' अभव्य जीवोनी कदापि मुक्ति थशे नही.श्री तीर्थकरभगवान् देव तरीके जाणवा. श्री तीर्थकरनी वाणी पांत्रीश गुणवाळी होय छे, चोत्रीश अतिशये करी युक्त श्री अरिहंत भगवान् होय छे. आ जगत्ने बनावनार कोइ नथी. जगत् अनादिकाळथी छे. मोक्षनी स्थिति पण अनादिकाळनीथी छे, द्रव्यार्थिक नयनी अपेक्षाये लोक अने अलोक शाश्वतो छे. जीवतत्व, अजीवतत्त्वादि नवतत्त्वे पण शाश्वतां छे,-सारांश के नवतत्त्वनो कोइ दीवस स्वस्वरुप करी नाश थवानो नी, नरकस्थान पण लोकनी अंदर आव्यु, देवलोक मनुष्यलोक पण लोकाकाशंनी अंदर आव्यो, वे संबंधी विशेष हकीकत संघयणी, क्षेत्रसमास, जंबुद्वीप पन्नत्तीथी जाणवी. आ दुनीयामां अनंता जीवो छे. कोइ एम कहे छ के परमात्माना अंश तरीके जीवो छे. ते तेनुं हेवू खोटं छे, दरेक जीवो परमात्मा स्वरूपे छे, कोइ मोक्षनुं स्थान मानता नथी ते अज्ञानीओ छे. सिद्ध शिला उपर मोक्षना जीवो छ, तेमने परमात्माओ सिद्ध भगवन्तो क्हे छे, त्यां तेओ अनंत. सुख भोगवे छे.
प्रश्न-सिद्ध भगवंतोमां के सुख हशे ?
उत्तर-सिद्धोनुं सुख मुखेथी कहीं शकाय तेम नथी कोइ अज्ञानी भील्ल वगडामा रहेतो हतो, त्यां कोइ नगरन राजा आवी चढयो, पेला भिल्ले राजानी आगतास्वागता करी. राजा भिल्लना उपर प्रसन्न थइ तेने पोताना नगरमा लइयो,
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