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१ ज्ञानावरणीय २ दर्शनावरणीय ३ वेदनीय १ मोहनीय ५ आमुष्य ६ नाम ७ गोत्रकर्म ८ अन्तरायकर्म ए ८ आठ कर्म दरेक जीवने क्षीरनी संयोगवत् लाग्यां छे: जो कोइ लोढाना गोळाने तपावे छे, त्यारे जेम लोढानो लालचोळ थइ जाय छे, सर्वत्र अग्नि गोळरमां व्यापे छे, तेम आत्माना असंख्यातप्रदेशे कर्म लाग्युं छे. ते कर्म अने आत्माना प्रदेशो चर्म चश्थी देखी शकाता नथी. ज्यारे विशिष्ट ज्ञान प्राप्त थाय छे, त्यारे कर्म तथा आत्माना स्वरुपनो साक्षात्कार थाय छे, कर्मनो नाश थतां जीव परमात्मारूपे थाय छे, एटले उत्कृष्ट स्व स्वरुपे शुद्ध निर्मल अनंत स्वशक्तिनो स्वामी आत्मा तेने परमात्मा सिद्ध, बुद्ध, इश्वर, परमेश्वर, विभु, प्रभु, महादेव आदि नामथी व्यवहराय छे. प्रभु एक नर्थी पण जेटला कर्म खपावीने मोक्षमां जाय, तेटला सर्व प्रभु तरीके कहेवाय छे. एक प्रभु नथी, पण अनेक प्रभु सिद्ध छे. एकमां अनेक, अने अनेकमां एक एम सिद्ध भगवंतोनी. मोक्षस्थानमा अवस्थीति छे. कदापिकाळे ते मोक्षस्थानमांथी अहीं पाछा आवनार नथी. प्रवाहनी अपेक्षाओं अनादि अनन्तमें भागे सिद्धोनी स्थिति छे. महावीरभगवान् आदिनी अपेक्षाए सादी अनंत भागे स्थिति छे. अतीतकाळे अनंत जीवो सिद्ध थया. कोई तीर्थकर पद पामी सिद्ध थया, कोइ सामान्य केवळी थइ सिद्ध थया, तीर्थकर पण अतीतकाळे अनंत थया अने हाल महाविदेह क्षेत्रमा सिद्ध थाय छे. अने अनागतकाळे सिद्ध यगे तोपण
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