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देवना उपर जे द्वेष करे छे, ते द्वेषथी पोते कर्मथी भारे थाय छे. अग्निनी पासे जनार जन उपर अग्निने राम नथी अने दूर रहेनार उपर द्वेष नथी, अग्निने सेववाथी शीतता नाश पामे छे. अने दूर रहेवाथी ताढ लागे छे. एमां अग्निने कंड राग द्वेषनुं प्रयोजन नथी. चार घाती कर्मनो नाश करनार भगवंतने राग द्वेष होता नथी, तेथी ते वीतराग कहेवाय छे. स्वकृत कर्मानुसारे सारी अगर नठारी बुद्धि उत्पन्न थाय छे यदुक्तं.
श्लोकाः
यथा यथा पूर्व कृतस्य कर्मणः फलं निधानस्यमिवाऽवतिष्ठते । तथा तथा तत् प्रतिपादनोद्यता । प्रदीप हस्तेव मतिः प्रवर्तते ॥ १ ॥
इत्यादि अनादिकाळथी आत्मानी अवस्थीति छे. जीवाने बनावनार कोइ नथी, जीवोने अनादिकाळथी कर्म लाग्युं छे, अने ते कर्मी आत्मा चार गतिमां भटके छे, अने परभावमा रमतो पोते कर्मनो कर्त्ता बने छे. परवस्तुना संयोगे आत्मा अशुद्ध परिणतिने धारण करतो छतो भव भ्रमण करे छे. इश्वर जीवाने बनावनार नथी. दरेक जीव प्रति आठ कर्म लाग्यां छे.
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