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आ पांच प्रकारनी निद्रामाथी कोइपण प्रकारनी निद्रा देवमां होती, नथी, तेथी तेमने पोढवानी पोढाडवानी जरुर पडती नथी, ए सर्व अज्ञान छे. देव निद्रा रहित स्वस्वरुपे सदा स्थिति युक्त छे.
अप्रत्याख्यान-देवने विष अप्रत्याख्यान पर्ण नथी.
राग-द्वेष, इष्ट उपर राग अने अनिष्टपर द्वेष सांसारिक जीवोने होय छे' पण रागद्वेष रहीत देव छे. देव जो एक उपर राग करे अने बीजा उपर द्वेष करे तो दोषवान् कहेवाय, अने तेथी ते देव कहेवाय नहीं, रागद्वेषवाळा जीवो माध्यस्थ होइ शकता नथी. ज्यां रागद्वेष त्यां अज्ञान, मोह वसे छे, देबने तो सर्व जीवोपर समदृष्टि होय छे.
आशंका-जे देवमां राग नथी ते देव पोताना भक्तो उपर राग रारक्शे नहीं अने शत्रुओर्नु खराब करशे नहीं, त्यारे एवा देवतुं ध्यान करवाथी शुं हित थइ शके ?
समाधान-हे मित्र राग द्वेष जने होय छे तेने क्रोध, मान, माया, लोभ, पण होय छे. अने क्रोधथी अन्यजीवोने घात पण करवो पडे छ: पोताना भक्तोने सुखी अने पोताने नहीं भजनाराओने दुःखी करवा, तो पछी समभाव देवमां शी रीते कही शकाय? अने दया पण शीरीते कही शकाय, माटे देवनामां राग द्वेष होता नथी, देवना मुण ओळखीने देवने जे स्मरे छे, तेने तदनुसारे ते गुणोनो लाभ थइ शके छे. अने
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