________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बाह्य पदार्थोना संयोगथी तेमने कंइ नथी.
अरवि-इष्ट पदार्थोना वियोगादियी देवने अरति उत्पन थती नथी. . भय-सर्व प्रकारना भयथी रहीत सर्वज्ञ देव छ, माटे तेमने आयुध, गदा, विगरे राखवानी जरुर नथी.
जुगुप्सा-जुगुप्सा देवने होती नथी, नठारी अने सारी बे वस्तु उपर समभाव छे तेथी प्रभुने जुगुप्सा यती नथी.
शोक-आध्यान अने रौद्रध्याननो नाश थवाथी श्री वीतराग देवने शोक थतो नथी माटे शोक रहीत देव छे.
काम-वेदनो उदय पण प्रभुने होतो नथी, विबुध माणस स्त्रीना लालचीने कदापि देव तरीके केहेशे नहीं.
मिथ्यात्व-अतत्त्वने विषे तत्त्व बुद्धि, सत् ने असत् मानवू इत्यादी सर्व अज्ञान पणाथी थाय छे, श्री वीतराग देव अढार दोष रहीत छे तेमने कैवल्य ज्ञान सूर्य समान हृदयमा प्रगट्युं छे तेथी लोकालोकना भावने यथार्थ जाणे छे तेथी मिथ्यात्वनो नाश थयो छे.
अज्ञान-मूर्खावस्था सहीत होय ते देव कहेवाय नहीं, दे वमा अज्ञान होतुं नथी, कैवल्य ज्ञान करी सहीत देव या इश्वर प्रभु छे.
निद्रा-निद्रा, निद्रा, निद्रा, प्रचला, प्रचला प्रचला. स्त्यानाधि.
For Private And Personal Use Only