SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.kobatirth.org * आध्यामिक ससुराल और श्रृंगार * ( ले. प्रो. हीरालाल र. कापडिया एम. ए. ) Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय और विदेशी साहित्य सृष्टि का अवलोकन करने वाले को यह भली भांति ज्ञात है 'रूपक' का उपयोग अनेक रचनाकारों ने किया है। जैन मुनि सिद्धर्षिगण की रचना 'उपमिति भव प्रपंच कथा' संस्कृत में रचित रूपक कथा का अजोड़ नमूना है । इसके पश्चात् जयशेखर ने वि० सं० १४६२ में 'प्रबोध चिंतामणी' नामक रूपक ग्रंथ की रचना की है । इसी विषय की विक्रम की पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गुजराती में रचित 'त्रिभुवन दीपक प्रबंध' है । इसे 'परमइंस प्रबंध' तथा 'प्रबोध चिन्तामणि चौपाइ' भी कहते हैं । स्व० केशवलाल ह. ध्रुव ने इसे गुजराती का प्राचीनतम रूपक ग्रंथ माना है । ( देखें जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ. ४५० ) इस प्रकार शताब्दियों से रुपक कृतियों की रचना होती चली आ रहीं 1 हैं । उनमें से एक रचना विनयप्रभसूरि द्वारा रचित 'आत्मोपदेश सज्झाय' है । यह खीमजी भीमसिंह माणक द्वारा प्रकाशित 'सज्झायमाला' के पृ. १९४ पर है । आठ गाथा की इस कृति की रचना प्रभाती राग में मीराबाई रचित 'मुझ अबलाने मोटी मीरांत बाई' से शुरु होकर 'गोविन्दो प्राण अमाटो रे' की याद दिलाती है । कवीयति के अन्य पदों का भी निम्न पंक्तियों में स्मरण होता है : For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy