________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
( ३६ )
कंठे वलगी लागे प्यारी,
साहेब ने रोझा वे ॥ चतुर नर० ॥
उपाश्रय ते कदी ना जा बे,
देह रे जावे हरखी ।
नर नारी सुं संगे रमतां,
सौ कौ' साथै सरखी ॥ चतुर नर० ॥
एक दिवस नुं लेखन तेहने,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
फरी नहि श्रवे कई काम ।
पाँच अक्षरे छे सुंदर तेनुं,
समझी ले जो नाम ।। चतुर नर० ॥
कांति विजय कवि एणी पेरे बोल्या,
सुणजो नर ने नार ।
ए अरीआलो नो अर्थ जे करे,
सज्जन ने बलि हार ॥ चतुर नर० ॥
ए हरियाली जो नर जाणे :- इस हरियाली को कोई चतुर व्यक्ति ही जान सकता है |
मुरख कवी देपाल यखाणे :- देपाल नामक कवि कहता है कि मूर्ख इसका अर्थ जानता है ।
॥ इति हरियाली सम्पूर्ण ॥
For Private And Personal Use Only