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क हरियाली और उसका अर्थ
कृत : कवि कान्ति विजय *
(ले० प्रो० हीरालाल र. कापडिया एम० ए० )
एक नर जो नपुंसक मली ने,
कुछ समय पहले मेरे द्वारा लिखित 'वल्लभ हरियाली' विवेचन सहित प्रकाशित मैंने देखी । मेरो साहित्यिक प्रवृत्ति में रस लेने वाले श्री डाह्याभाई मोतीचंद सोना चांदी वाले ने ई० सं १९०४ में 'श्री वेलजी मोहकचंद' तथा 'स. डाह्याभाई गोधावीवाला' की ओर से प्रकाशित 'श्री मनोरंजक जैन स्तवनावली' के पृष्ठ ४८ (अंतिम पृष्ठ ) पर छपी निम्न हरियाली को बताकर मुझ से उसका अर्थ पूछा ---
नारी एक नी पाई ।
हाथ पाउ नवी दोसे ते ने,
मा विण बेटी जाई ।
चतुर नर ऐ कोणे कही ए नारी,
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हरि हर सुर ने प्यारी ।
चीर चुंदडी चणीयो चोली,
नवी पहेरे ते साड़ी ।
छेल पुरुष देखो ने मोहे,
उत्तम जाती नाम धरा थे,
एवी एह रूपाली ॥ चतुर नर० ॥
弱弱
मन माने तीहां जावे ।
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