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( ४१ ) 'सासु अमारी सुषुमणा रे, ससरो प्रेम संतोष ।
जेठ जगजीवन जगत मां, मारो नावलीओ निर्दोष ॥' इन पंक्तियों का निम्न समीकरण है :
सास-सुषुमणा, ससुर-प्रेम, जठे-संतोष, नावलिया-जगजीयन ।
उपर्युत 'आत्मोपदेन सन्नाय' को उद्धत करने के पहले स्त्री के जीवन में ओतप्रोत पीहर ऑर ससुरास के व्यवतियों का पुत्र और पुत्रवधु का संबंध मनोरम रुपको द्वारा रंगीन चित प्रस्तुत करने वाला एक 'गीत का स्वरूप' नामक 'सुन्दरम्' की लेखमाला के छठे लेख में से यहां उद्धत करता हूं :हूँ तो सूती रे मारा रंग रे महेल मां,
सूतां ते सपनां लागियां जी रे । ऊंडा जलहल रे में तो सपनामां दीठां,
मान सरोवर भयाँ दठां जी रे ॥ प्रांगणे हरती रे में तो सपना मां दीठां,
___ कुंभ कलश त्या भयाँ दीठां जी रे। आंगणे आंबलों रे में तो सपनां मां दीठो,
जाय जावंत्री डूंगे-डूंगे जो रे ॥ मोतीना चोक रे में तो सपना मां दीठां,
लीलीहरियाली त्यां बहु फली जीरे। • यह लेखमाला प्रजाबंधु' ( साप्ताहिक ) में मार्च और अप्रेल के अंकों में प्रकाशित हुई है । इसमें एक साथ सात लेख है।'
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