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8 हरियाली
[ कुछ उद्धरण - समस्याएँ] [ संग्राहक : मुनिराज श्री ज्ञान विजय जी ]
एक पुराणी हस्तलिखित प्रति से कुछ उद्धरण (समस्याएँ) उतारी है । कुछ अटपटे और बंध बैठते भी नहीं लगते । संभव है अर्थ बराबर ध्यान में नहीं आने से पदच्छेद में भूल हो गई हो, फिर भी भाषा के लिये इसे उपयोगी समझकर यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है । जिन्हे हम आम बोल चाल की भाषा में पहेलीयाँ कहते है। जब जाइ तब बीस गज, भर जौवन गज च्यार । वलती वेर पचास गज, राजा भोज विचार ॥१॥ (परछाइ) एकज नारी नगर मजार, काचो कोरो करे आहार । छपगी ने चाल बीहुं, चिहुं आख्या ने देखे बेजु ॥२॥ (छापी) जलमांहि फल नीपजे, वण डांडी फल होय । रावां के घरही हौवे, रांका के घर नांहि ॥३॥ (मोती) गजदंतो सोहांमुखो, बाध्यो नगर मझार । सासु बहु ने दीकरी, तीन एक भरतार ॥४॥ (चुड़ो) वांक मुहि कर पतली, नाम भणीज नार । उण नारी नर मानीयो, राजा भोज विचार ॥५॥ (कबारा) तांबा वरणी बहु गुणी, वधी होवे विण पाय । वाय वाज वधे बहु, सोचीयां कमलाय ॥६॥ (वासेद) जल विन वधै सो वेलडी, जलदी वां कुमलाय। जो जल कोज दुकिंडो, जडामूलसुं जाय ॥७॥ (तरखा-तुषा)
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