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( ३३ ) वणं अंगुठा विण घणा, दुही कणी जगाय । पिडत हरियाली पर छवि, चतुर करी विचार ॥८॥ (मेह-वर्षा) आखो अखंड कहावै लागो, बीहै नही बीहाखण लागो। अनेन पुरुष असतरी कर लागो, जिहांलग कुसलजंग नहीं लागो ॥९॥
(खांडो) अंग गोरा मुख सांमला, दोय नर एको बण। काबल मुग़ल पठाणā, रह्या तंगोटी ताण ॥१०॥ (स्तन) काले वन में नीपजे, वरण जो धवजो होय ।। सुंदर गांधी ने कहै, थाहरे होवै तो देय ॥११॥ (चना) एक जनावर अजब सा दीठा, बहोत चलत थका । यफर गरदन काट के, बहोत चलण लागा ॥१२॥ (लेख) डूंगर कडबै घर करै, सरली मुकी धाय । सो नर नेणे नोपजे, मोही साद सुहाय ॥१३॥ (मोर) सुको तरवर हे सखी, फल लागोमें दीठ । चाख सो जीवे नहीं, जीवें सो ही निठ ॥१४॥ (बरछी) सुको सरवर हे सखी, कमला अंत नी पार ।। करण हरियाली पर ठवि, राजा भोज विचार ॥१५॥ (काच) अंगे गौरी मुखा सांवली, सुंदर बहुत सुजाण । चुतरां पकडी चुप करी, अलगा रह्या अजाण ॥१६॥ (लेखन) च्यारै पाया च्यार इस, बै जणा बैठा करे जगीस । खाय काथो ने पान,बेइजणां के बावीस काम।१७।(रावण मंदोदरी)
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