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- हरियाली [कृत अर्थ युक्त : श्री विनयसागर मुनि ]
सेवक आगल साहेब नाचे, बहे गंगा जल खारे । गर्दभ सारे गयवर वेच्या, ए अचरज मोहे मारे । चतुर नर बूझो ए हरियाली, जेम उत्तराहु देहि संभाली
॥ए आंकाणी ॥१॥ अर्थ :- कर्म रूपी सेवक के आगे जीव रूपी राजा नाचता है। जिनवाणी जो गंगा जल के समान मीठी है, उसे कुछ मतवादी झठे अर्थ कर खार पानी जैसा बना देते हैं । प्रमाद रूपी गधे के बदले में संयम रूपी हाथी बिक रहा हैं अर्थात कुछ संयमधारी प्रभाव के वशीभूत होकर शुद्ध संयम का पालन नहीं कर पाते अतः मुझे यह भारी आश्चर्य की बात लगती है । हे चतुर लोगों ! इस हरियाली को आप समझें और सावधानी पूर्वक इसका उत्तर दें ।।१।।
मांकड ने वश जोगी नाच्या, मार्यो सिंह सियाले। एक चीटीए पर्वत ढायो, अचरज इण कलिकाले ॥चतुर०॥२॥
अर्थ :- मन रूपी मकड़ी के वशीभूत असंयमी योगी नाचते हैं । शील रूपी सिंह को काम रूपी सियालिआ मार रहा है। तृष्णा रूपी चिटी सतोष रूपी पर्वत को गिरा रही है। यह आश्चर्य कलियुग में दिखाई दे रहा है ।।२।। सुरनरु साखाए कागच बेठो, विषधर गरुड विडा रे। कस्तुरी परनाले वाहे, लसण भर्यु भंडारे ॥चतुर०॥३॥
अर्थ :- जिनशासन रूपी कल्पवृक्ष पर कुगुरु रूपी कौवा बैठा है । अज्ञान रूपी सर्व ज्ञान रूपी गरुड को विडंबित कर रहा है । समता
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