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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३ ) उसका यश गाते हैं । प्रथम अक्षर के न होने पर उसे पाठशाला में आकर हर्ष पूर्वक ग्रहरण करते हैं ॥१॥ मध्य का अक्षर न होने पर यह उत्तम व्यक्ति की प्यारी नहीं लगती । यह तीन अक्षरों से पूर्ण होती है, राजकुल में बहुतायत से होती है । ||२|| पहले अक्षर के मात्रा है, दूसरा मात्रा रहित है । तीसरे अक्षर को देख कर शीघ्र अर्थ को पहिचानिये || ३ || एक कुछ काम नहीं आता, दूसरा काम में आता है । सुधनहर्ष पंडित पूछता है कि उसका क्या नाम है ? ||४|| हरियाली १० डाले दोठी सूडलो, तस पाँख न श्रावे । चुण करवाने कारणे, तोहे न पण जावे ॥ १ ॥ डाले. ॥ देह वर्ण नीलो नहीं, तस चांचल नोली । चांचे इंडा मूकती, सागर मां जीली ॥२॥डाले. ॥ ते इंडा चांप्यां घणां, तोहें (ये) नवि फूटे । इंडानी भगति करे घणी, तस पातक खुटे ॥ ३ ॥ डाले. ॥ धर्नहर्ष पंडित इम भणे, कहो ते कुण सूडी । श्ररथ विचारी जे कहे, तेहनी मति रूडी ||४|| डाले. ॥ हिंदी शब्दार्थ : शाखा पर तोता बैठा है, उसके पंख नहीं आते । वह चुग्गा चुगने के लिये भी नहीं जाता ||१|| उसके शरीर का रंग हरा नहीं है, सिर्फ चोंच ही हरी है, वह चोंच से अंडा देती है और समुद्र में रहती है ||२|| उन अंडो को बहुत दबाने से भी नहीं फूटते । जो अडों की बहुत भक्ति करे तो उसके पाप समाप्त हो जाते हैं ||३|| जो इसका अर्थ विचार कर कहेगा उसकी बुद्धि सुन्दर है । सुधनहर्ष पंडित हैं, कहिये वह शुक कौन है ||४|| For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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