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( २२ ) अग्नि जलाती है, न पानी डबता है, न हवा हिला सकती है। वह अपनी माता का कहना मानती है और उसके पास रहती है ॥२॥ न अन्न खाती है, न पानी पीती है। उसे भूत भी नहीं पकड़ सकता। उसका निवास तुम्हारे पास ही है । हे पंडित ! सोचकर इसका अर्थ कहो ।।३।। न वह लाल है, न ही मोटी है, वह दुभली भी नहीं है। वह साधुओं के पास भी रहती है, कोई उसे छोड नहीं सकता । ४।। वह किसी से नहीं डरती, विषम स्थान में भी प्रवेश कर जाती है, वह छोकरी माँ की गोद में बैठाने पर भी नहीं बैठतो ।।५।। उसके हाथ पाँव और सिर दिखाई देता है । दबाने से उसे दु:ख नहीं होता। माँ बेटी में स्नेह नहीं है फिर भी माँ के पास रहती है ॥६॥ उसे काम वासना जागृत नहीं होती, शस्त्र का घाव उसे नहीं लगता, किसी को उसका भारी पन भी नहीं लगता । सुधनहर्ष कहते हैं कि इसका जो अर्थ होता है, वह कहिये ।।७।।
हरियाली ९
(राग आसावरी) मंगलकारी अंत्याक्षर विण, सहुये जग जस कहवे रे । निशाले आवी ना (ने) प्रथमाक्षर, हर्ष धरी ग्रहवे रे ॥१॥म.॥ मध्याक्षर विण ते उत्तमने, होय न कहीं ऐ प्यारी रे।। अक्षर त्रण करी ते पूरण, राजकुले घणी सारी रे ॥२॥म.॥ पहला अक्षर ने छ कानो, बीजो केवल जाणो रे त्रीजे अक्षरे जिम निरखी, वहेजो अर्थ पिछाणो रे ॥३॥मं.॥ प्रांवे एक न कांइ कामे, बे तो कामे आवे रे । धनहर्ष पंडित इण परि पूछे, ते स्युं नाम कहावे रे ॥४॥म.॥ हिंदी शब्दार्थ :
अंतिम अक्षर के न होने पर वह मंगलकारी है, संसार में सब
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