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पहन रखा है, उस हार में माणक जड़े हुए हैं, जो गुण का भंडार है ।।३।। सभी उससे रंग धारण करते हैं, वह भी रंग धारण करती है। जब दो रंगीले एक साथ मिल जाते हैं, तब मन की शांति को प्राप्त करते हैं ॥४॥ वे सबसे आगे रहते हैं, तब किसी को दुःख नहीं होता। हिन्दू सबको प्यारे होते हैं, जिन्हें देखने से सुख होता है ।।५।। जिसमें बहुत बड़े गुण हैं, जो मंगल की माला के समान है। सुधनहर्ष पंडित कहते हैं कि इसका अर्थ बहुत विशाल है ॥६॥
हरियाली ३
( राग असावरी) कान छे पण सुणे न कांई, दांत नहीं पण चाबे रे। तेहने आभडछेट न होवे रे, सहुनुं पीरस्युं खावे रे ॥१॥का० पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, काम होय तो होंडे रे । होंडतां जे हडिए प्रावे, तेह तणुं फल फेडे रे ॥२॥का०॥ तेहने पेट थकी जे जायो, नान्हडिओ वारु रे। पर उपगारी तेह भणीजे, प्राण तणो आधारं रे ॥३॥का०॥ अर्द्ध तेहy भूमि दीसें, अर्द्ध ते गिरिने शृंगे रे । कानमांहिं जो कामिनि पेसे, तो तो आवे रंग रे ॥४॥का०॥ में जोया पण पाय ना दोसे, कर दीसे वलि तेहने रे। पांव(पग)तणुं ते काकरे रे, तो होय ऊधी गति तेहने रे ॥५॥का. मास बे चार विमासी जो जो, तेशु नर के नारी रे । धनहर्ष पंडित इणपरि पूछे. कहेज्यो अरथ विचारी रे ॥६।।का.।। हिंदी शब्दार्थ :
उसके कान है पर किसी की कुछ भी नहीं सुनता, दाँत नहीं है
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