SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १७ ) फिर भी चबाता है । उसे छुआछत नहीं है, किसी का परोसा हुआ खा लेता है ||१|| काम हो तो पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों ओर घूम लेता है । घूमते हुए जो भी उससे टकरा जाता है, उसे उसका फल मिल जाता है || २ || उसे जिसने पेट से जन्म दिया, वह छोटा और सुन्दर है । वह परोपकारी और प्राणों का आधार माना जाता है ||३|| उसका आधा भाग तो भूमि पर है, और आधा भाग पहाड़ की चोटी पर है । यदि उसके कान में कोई कामिनी प्रवेश कर जाये तो वह रंग पर चढ़ जाता है ||४|| मैंने देखा, पर उसके पाँव तो दिखाई नहीं देते, हाँ हाथ अवश्य दिखाई देते हैं । यदि वह पाँव का कहना माने तो उसकी गति उल्टी हो जाती है ||५|| दो चार माह विचार कर बतायें कि वह पुरुष है या स्त्री ? सुधनहर्ष पंडित पूछता है कि इस पर विचार कर इसका अर्थ बतायें ||६|| हरियाली ४ डूंगर डे रलियामणे, एक नारी चाले । साथै एक पुरुष भलो, वली पाछी वाले ॥ १ ॥ डूं० ॥ एकल की बहुस्युं भडे, पण तो न हारे । जे नर एस्युं बल करे, तस मूलथी वारे ॥ २ ॥ डूं० ॥ वदन चरण तेहने नहीं, नवि कांइ खावे । दांते छोरु प्रसवती, तस सृप्ति न आवे || ३॥डूं० ॥ ते नारी घरि घरि प्रछे, पण साधु न राखे । धनहर्ष पंडित इम कहे, जिनवर इम भाखे ॥४॥ डूं० ॥ हिंदी शब्दार्थ : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुन्दर पहाड़ पर एक स्त्री चल रही है, साथ में एक पुरुष भी चल रहा है, जिसे वह पीछे मुड़कर देख रही है || १ || वह अकेली For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy