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है, उसे कोई ढक नहीं सकता कोई नहीं है ||५||
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( १५ )
सुधन हर्ष पंडित कहते हैं कि इससे सुन्दर
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हरियाली
बेउ नपुंसक एकठा रे, करिया एकज ठामि ।
मामा मेलव्या, तेत्रीजे नर नामिरे । पंडित सांभलो । अरथ कहे मुक्त एह रे, पंडित सांभलो ।। टेर॥
ते त्रणे नारीस्युं मिल्या, पुत्र हुइ ताम ।
डगलो एक न चातरे, जो होय शत काम रे || २ ||१०|| चोखा मुस्ताकल तणो, जेणे पहेर्यो हार । माणिक ठविडं हारमां, जे छे गुणनो भंडार रे || ३ || पं० ॥ रंग धरे सह तेहस्युं, ते पण रंग धरंति । बेरंगीला जो मिले, तो पूर्गे मन खंति रे ॥४॥ पं० ॥ ते सहु मुख आग़ल रहे, न होय केहने दुःख । हिंदु सहुने वल्लही, जे दीठे होय सुख रे ॥५॥ पं० ॥
गुण मोटा छे जेहमां, करे तो मंगल माल । धनहर्ष पंडित एहने, जाणे अरथ विशाल रे ॥६॥ पं०॥
हिंदी शर्थ :
दो नपुंसक एकत्रित हुए, वे दोनों एक स्थान पर आ गये, दोनों एक दूसरे से परस्पर मिले | फिर वे एक तीसरे पुरुष से मिले और उसे नमस्कार किया । हे पंडित ! सुनो, मुझे इसका अर्थ बतादो || १ || वे तीनों एक स्त्री से मिले, तब उनके एक पुत्री हुई, चाहे सौ काम हो, वह एक कदम भी नहीं चलती ||२|| उसने अच्छे मोतियों का हार
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