________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हरि या लि यें
[कृत : सु धन हर्ष ] सुधन हर्ष जो द्वारा कृत ये ११ (ग्यारह) हरियालियें संवत् १७१५ वर्षे आसोज सुदि १३ दिने लिखितं सा. रतन पठनार्थे श्री शान्तिनाथाय नमः । एक चोपड़ी ना. भ. (यति नानचंदजी के शिष्य मोहनलाल के पास से प्राप्त)।
सुधन हर्ष तपगच्छ के प्रसिद्ध हीर विजयसूरिजी के शिष्य धर्म विजयजी के शिष्य थे। इन्होंने सं. १६७७ में 'जम्बूद्वीप विचार स्तवन' तथा अन्य कृतियें जैसे 'देव कुरुक्षेत्र स्तवन' और 'मंदोदरी रावण संवाद' को रचना की थी। हरियाली अर्थात् समस्या। किसी शब्द या अर्थ को गूढ रखते हुए बाद में उस गूढ शब्द या गूढार्थ को ढूंढ निकालना ऐसा लगता है कि हरियाली शब्द रूढ हो गया था । संस्कृत में इसका क्या रूप है, इस पर यदि कोई प्रकाश डालेंगे तो बड़ी कृपा होगी इस शब्द का निम्न स्थलों में प्रयोग हुआ है :
'गुणावली कहे प्रभु अवधारी, एक हरिमाली कहो सुविचारी। मोटा पांच ध्येयना नाम, पाराधइ सवि सोझह काम । त्रण भक्ष्यर मांहि ते जागि, इह परवि सुखिना मन प्रारिण' ॥55।।
'मुझ हरिमाली कवरण विचार, ते कहेजो प्रभु मरथ उदार ।।६३॥'
प्रेमलालच्छी आ. का. म. मौ. १४४३]
'काव्य सिलोक अनई हरीआली रे, गाहा पहेली कहे रसाली रे।' पृ. ४०६
For Private And Personal Use Only